सेहत...............................................




सेहत
 जोडों़ के चोट के लिए आर्थोस्कोपी काफी कारगर
डॉ. संजय अग्रवाला
प्रमुख, अस्थि रोग विभाग 
पी.डी. हिंदुजा नेशनल अस्पताल, मुंबई  

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक हालिया अध्ययन के मुताबिक 30 साल से अध्कि उम्र की तकरीबन 20 पफीसदी शहरी आबादी किसी न किसी जोड़ के दर्द से पीड़ित है. दर्द निवारक दवाईयों से इसे दबाने पर पेट में अल्सर, शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा में बढ़ोतरी, गुर्दे व लीवर खराब हो सकते हैं. आज नये अविष्कृत अनूठे यंत्र आर्थोस्कोपी से जोड़ के दर्द के कारण की जांच और इलाज दोनों एक साथ हो सकते हैं.
दोषपूर्ण जीवन शैली और बैठने-बैठने के गलत तरीके के कारण गठिया समेत घुटने, कमर व कंध्े जैसे तमाम जोड़ों के दर्द के मरीजों की संख्या में बेतहाशा वृ(ि हो रही है. लोग तत्काल उपाय की सोचते हैं और दर्द निवारक दवाईयों का सेवन करने लगते हैं. यही कारण है कि टेलीविजन, पत्रा-पत्रिकाओं  में दर्द निवारक दवाईयों के विज्ञापनों की भरमार है. विज्ञापन आक्रामक और विश्वसनीय प्रतीत होते हैं पफलतः लोग अभ्यस्त हो जाते हैं. इसके अत्याध्कि सेवन से दवा का प्रभाव समाप्त हो जाता है. साथ ही शरीर में एसिडिटी की मात्रा बढ़ जाने से पेट में गैस विकार और अल्सर हो सकते हैं. कई बार गुर्दे या लीवर खराब हो सकते हैं. 
प्रभावित कौन: आमतौर पर कोई भी इस रोग का शिकार हो सकता है. लेकिन ऑस्टियो व इयूमेटाइड आर्थराइटिस के मरीज, अस्थि संबंध्ी हार्मोन विकृति वाले, दुर्घटना के शिकार लोग, मोटापा ग्रस्त, आरामपरस्त, कंप्यूटर ऑपरेटर, दुपहिया चालक, खिलाड़ी, टाइप-ए व्यक्तित्व के लोग, क्लर्क, दुकानदार, घरेलू एवं अनियमित महावारी की शिकार महिलाएं और बहुमंजिली इमारतों के वाशिंदे खासतौर पर युवावस्था से ही किसी-न-किसी जोड़ के दर्द से पीड़ित हो जाते हैं.
बनावट: शरीर की सभी एच्छिक क्रियाओं के संचालन में जोड़ संतुलन प्रदान करता है. जोड़ की बनावट में तीन चीजें - क्रुशिएट लिगामेंट जोड़ को स्थायित्व प्रदान करता है. यह दो प्रकार का होता है - अग्र ;इंटेरियरद्ध और पश्च ;पोस्टेरियरद्ध. अस्थि खंड के छोर पर चिकनी परत होती है. इसे कार्टिलेज कहते हैं. यह जोड़ में पिफसलन पैदा करती है. मेनिसकस जोड़ में शॉक आब्जार्बर का काम करता है.
जोड़ में दर्द का कारण: किसी भी कारणवश लिंगामेंटस, कार्टिलेज और मेनिसकस में खराबी होने पर व्यक्ति को जोड़ में दर्द, सूजन और अटकन की तकलीपफ शुरू होती है. वास्तव में उम्र बढ़ने के साथ कार्टिलेज की स्वाभाविक चिकनाहट समाप्त होने लगती है. पफलतः जोड़ घिसने लगता है. जोड़ की इस खराबी हो आस्टियों आर्थराइटिस कहते हैं. इसमें दर्द होता है. संक्रमण, टीबी या ट्यूमर की अनदेशी के कारण युवा-अवस्था में ही कार्टिलेज घिसने लगते हैं. जोड़ की इस खराबी को रयूमेटाइड आर्थराइटिस या गठिया वात कहते हैं. इसमें दर्द और सूजन होते हैं. शरीर में यूरिक एसीड की मात्रा बढ़ जाने से भी जोड़ खराब हो सकते हैं. जीन या हार्मोन विसंगतियों अथवा आनुवांिशंक कारणों से तथा शरीर का अध्कि वजन बढ़ने से. कई बार दुर्घटना या अन्य Úैक्चर के कारण जोड़ के अन्दर मांस का टुकड़ा कटकर कार्टिलेज में पफंस जाने से या पिफर खिलाड़ियों व स्कूली बच्चों को खेलने के दौरान, बस व ट्रेन से उतरते वक्त या स्कूटर में ‘किक’ मारते वक्त मेनिसकस के क्षतिग्रस्त हो जाने से अक्सर जोड़ खराब हो जाते हैं.
 अध्किांश मामले में जोड़ के दर्द के सटीक कारण का पता नहीं चलता है. मरीज कई चिकित्सकों से दिखा चुके हैं और दर्द निवारक दवा आजमा रहे होते हैं परन्तु दर्द ज्यों का त्यों रहता है. वास्तव में होता यह है कि क्रुशिएट लिंगामेंटस, कार्टिलेज या मोनिसकस के क्षतिग्रस्त होने पर, मामूली पफेक्सर होने पर, संक्रमण होने पर, जोड़ के अन्दर की लाइनिंग या पट्टी ;साइनोबियमद्ध बिगड़ जाने पर वहां एक्सरे पर कुछ दिखता ही नहीं है. इस कारण चिकित्सकों को भी दर्द के कारण का पता नहीं चलता है.
आर्थोस्कोपी से निदान: चाहे दर्द का कारण जो भी हो उससे स्थायी तौर पर छुटकारा पाने के लिए आर्थोस्कोपी एकमात्रा कारगर उपाय है. आर्थोस्कोपी पफाइबर ऑप्टिक क्रांति का कमाल है. जापान में इसका पहला प्रयोग घुटने में टीबी के इलाज में हुआ. आर्थोस्कोपी एक यंत्रा समूह है. इसमें चार मिलीमीटर छोटा एक खास यंत्रा होता है. 
जांच व इलाज के वक्त यंत्रा के एक सिरे को जोड़ के अंदर डाला जाता है. दूसरा सिरा तीन भागों में बंटा होता है. एक भाग प्रकाश स्रोत का होता है. दूसरे भाग को सापफ करने के लिए इसका प्रयोग होता है. तीसरा भाग कैमरे और कंप्यूटर से जुड़ा होता है. कैमरा जोड़ के अंदर की तस्वीर को कंप्यूटर स्क्रीन पर उतरता है. यह तस्वीर कई गुना अध्कि आवधर््ित होती है. शल्य चिकित्सक कारण का पता लगा लेते हैं. उसी दौरान क्रुशिएट, मेनिसकस या कार्टिलेज की मरम्मत करना हो और जोड़ की खराब लाइनिंग ;साइनोबियमद्ध को या कटे-पफटे मांस के टुक्रड़े को बाहर निकालना हो. जोड़ के अंदर इन्पफेक्शन, टीबी या ट्यूमर हो ठीक करना हो या जोड़ के अंदर पानी भरे होने पर ऊतक जांच ;बायोप्सीद्ध के लिए नमूना लेना हो सभी प्रकार की शल्य क्रिया ऑथ्रोस्कोपी की मदद से बड़ी आसानी से की जा सकती है.
आर्थराइटिस के मरीजों के लिए आर्थेस्कोपी वरदान साबित हो रहा है. उम्र बढ़ने के साथ अब कार्टिलेज का घिसना शुरू होता है और जोड़ में घर्षण होने लगता है तो आर्थोस्कोपी से जोड़ के अंदर कार्टिलेज को पुनः चिकता ;स्मूथद्ध बनाया जा सकता है. इससे आर्थराइटिस का विकास रूक जाता है. कभी-कभी 40 सल के युवा में आर्थराइटिस कापफी बढ़ जाने से जोड़ के अंदर कार्टिलेज के छोटे-छोटे टुकड़े पड़े होते हैं. ऐसे मरीज में उम्र कम होने की वजह से कृत्रिम जोड़ लगाना उचित नहीं होता है. उनके लिए आर्थोस्कोपी का सहारा लिया जाता है. डॉ. संजय अग्रवाला,देश के जाने माने स्पाइन सर्जन हैं व भारत में लेसर डिस्केक्टॉमी की शुरूआत इन्होंने ही की है. 

From Umesh kumar Singh

1 comment:

  1. Health is wealth!! Nicely explained in this blog Visit us http://bit.ly/2XzelVY
    Express Clinics is India’s fastest growing “Multispeciality Clinic & Diagnostic Chain” having 24 clinics operational across Bengaluru, Delhi, Faridabad, Ghaziabad, Gurgaon, Noida, Navi Mumbai and Pune along with centralized Lab in each location.
    In addition, we also have a network of 3200 affiliate Diagnostic Clinics as our Network Partners, providing coverage in 500+ cities on a pan India basis. An ISO 9001:2015 Certified Enterprise with an NABL Accredited Lab*, Express Clinics currently serves 700+ corporate clients across various industries like Manufacturing, IT & ITES, Hospitality, Pharmaceutical, Banking and Insurance to name a few and has served over 10 Lakhs + retail customers since its inception in March 2011.

    ReplyDelete